उदास है यह रास्ता, या हूँ मैं उदास
यहाँ कांटे भरे हैं या है यहाँ मेरा एहसास
ये जगह वीरान है या कोई नहीं है मेरे पास
बस इसी सोच में दिन ढल जाता है,
बस इसी सोच में सवेरा हो जाता है,
बस इसी सोच में फिर दिन ढल जाता है |
यहाँ कांटे भरे हैं या है यहाँ मेरा एहसास
ये जगह वीरान है या कोई नहीं है मेरे पास
बस इसी सोच में दिन ढल जाता है,
बस इसी सोच में सवेरा हो जाता है,
बस इसी सोच में फिर दिन ढल जाता है |
1 comment:
While reading this poem the thought going through my head was, I've asked the same questions. In fact, I've written about it myself. May be someday I will want to share it on Zurrat....
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